डूंगरपुर जिला गाँधी जयंती पर कुछ खास नज़र आया. आइये देखते है कि डूंगरपुर ने क्या खास किया.
खास खबर देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करे.
http://www.journalisttoday.com/online-news/haryana-news/7093-2010-10-02-13-00-२२
http://www.pressnote.in/rajasthan-news_95686.हटमल
http://www.pratahkal.com/News/ReadNews.aspx?ID=१६२१९
http://www.khaskhabar.com/narega-workers-innogerate-the-statue-of-mahatma-gandhi-102010022214138673.html
03 अक्तूबर, 2010
22 मार्च, 2010
बिन पानी सब सून - - - -
आज विश्व जल दिवस है, पानी सीमित है ऐसे में सभी लोगों को भी इसे सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करने होंगे। डूंगरपुर शहर के बीच ऐतिहासिक गेपसागर झील है। हमारा सौभाग्य है कि हमें प्रकृति ने इतना मनोरम वरदान दिया है। शहर की शान गेपसागर झील के पार्श्व भाग में उगे कमलदलों के बीच से लिया गया यह फोटोग्राफ विश्व जल दिवस और गेपसागर के जल को सुरक्षित रखने के लिए संदेश देता प्रतीत होता है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है।
03 मार्च, 2010
होली की मस्ती में अंगारों पर दौड़ते ग्रामीण
फागुनी मस्ती का पर्व होली डूंगरपुर जिले में अनोखे ढंग से मनाया जाता है। यह वही जिला है जहां पर पत्थरमार होली का आयोजन भी होता है। इसी जिले के एक गांव कोकापुर में होली की मस्ती में ग्रामीण जलती हुई होलिका के दहकते अंगारों पर चलकर श्रद्धाभिव्यक्ति करते हैं। आईये देखते है अंगारों पर चलकर ग्रामीण किस तरह होली का आनंद उठाते हैं।
http://www.youtube.com/watch?v=rqJUul0Iim4
http://www.youtube.com/watch?v=rqJUul0Iim4
25 फ़रवरी, 2010
डूंगरपुर की खूनी होली
आज तक आपने कभी सुना या देखा नहीं होगा कि किसी जगह खून बहाकर होली खेली जाती है। आईये मैं आपको दिखाता हूँ मेरे डूंगरपुर जिले के एक गांव भीलूड़ा में सदियों से एक दूसरे पर पत्थर बरसा कर खून बहाया जाता है और होली का आनंद उठाया जाता है। जी हां, यदि आप इस दृश्य से रुबरू होना चाहते है तो देखे नीचे दिया गया विडियो या पहुंचे डूंगरपुर जिले के भीलूड़ा गांव धुलेण्डी के दिन ।
http://www.youtube.com/user/dungarpurnews#p/a/u/0/-cthki8rwE0
http://www.youtube.com/user/dungarpurnews#p/a/u/0/-cthki8rwE0
24 फ़रवरी, 2010
रंग रूप वेश भाषा सारे ही एक हैं
मेरा डूंगरपुर वाकई अद्भुत, अनूठा और गौरवशाली है। यहां की अनूठी परम्पराएं, भोले भाले लोग और वैभवशाली संस्कृति वास्तव में सबसे अलग ही है। कुछ दिनों पहले देश का सबसे बड़ा आदिवासी मेला जिले के बेणेश्वर धाम पर आयोजित हुआ, इसमें लाखों जनजातिजन भी सम्मिलित हुए। कुछ नज़ारे वास्तव में आकर्षित करने वाले थे। आदिवासी बालाएं मेले का लुत्फ उठाने के लिए सजधज कर एक ही वेशभूषा में मेले का आनंद उठाती नज़र आई। आकर्षक नज़ारा यही तथ्य उद्घाटित कर रहा था - हिन्द देश के निवासी सभी जन एक है, रंग रूप वेश भाषा सारे ही एक है ।
23 जनवरी, 2010
खुशी मिली इतनी कि
इन दिनों पूरा राजस्थान गांवों की सरकार चुन रहा है। ऐसा ही कुछ डूंगरपुर जिले में भी हो रहा है। कल देर राञि ग्राम पंचायतों के सरपंचों के लिए मतदान उपरान्त मतगणना हुई और अल सुबह ही अधिकांश ग्राम पंचायतों के लिए चयनित सरपंचों की घोषणा भी हुई। इस घोषणा के बाद तो इस अंचल के गांव गांव में जैसे जश्न का माहौल था। कुछ युवा तो इतने उत्साहित थे कि अपनी खुशी का इजहार करते करते खुद को भी भूल गए। एक ऐसा ही नजारा आज सुबह ही एक गांव में दिखाई दिया तो सोचा इसे अविस्मरणीय नजारे को आप सभी के साथ शेअर किया जाए। लीजिए प्रस्तुत है खुशी मिली इतनी शीर्षक से यह नजारा, नीचे दिए गए लिंक को भी क्लिक कर इस विडियो का आनंद उठाया जा सकता है
http://www.youtube.com/user/dungarpurnews#p/a/u/0/S23v_PLorfY
http://www.youtube.com/user/dungarpurnews#p/a/u/0/S23v_PLorfY
11 जनवरी, 2010
सिर्फ एक फोटो
कुछ व्यस्तताओं के कारण कई दिनों के बाद यह पोस्ट कर रहा हूँ, शायद इस वर्ष की यह पहली पोस्ट होगी। इस फोटो के साथ इस वर्ष के क्रियेशन का शुभारंभ करता हूँ, शायद पोस्ट पसंद आएगी।
19 नवंबर, 2009
ऐसे भी होता है मछली का शिकार
राजस्थान के दक्षिणांचल वागड़ में मछली के शिकार का अनूठा पारंपरिक तरीका विद्यमान है। इसमें एक थाली के उपर कपड़ा बांधा जाता है और इस कपड़े के बीचों बीच मछली के आकार का छेद किया जाता है। थाली के कपड़े को भिगाकर इस छेद के चारो ओर आटा लगा दिया जाता है। इसके बाद इस थाली को छिछले पानी में जाकर रख दिया जाता है। आधे एक घण्टे के बाद थाली को निकाल कर देखा जाता है तो इसमे ढेर सारी मछलियां पकड़ में आ जाती है। इसके बाद इन मछलियों को धोकर भोजन में इस्तेमाल किया जाता है। अब आप खुद ही देखिये भला कैसे होता है ऐसा अनूठा शिकार ।
16 नवंबर, 2009
सर्द सुबह और कोहरा
फयान तूफान के बाद कुछ दिनों से अचानक ही आए मौसम में बदलाव ने अचानक ही सर्दी का अहसास करा दिया। गत दो दिनों से जिले में जहां अचानक ही लोगों को हाड़कपाने वाली सर्दी का अहसास कराया वहीं आज सुबह कोहरे ने भी अपना असर दिखाया। आज अलसुबह तो कोहरे के कारण जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया और इस दौरान कुछ अलग अलग नजारे दिखाई दिए, उसी की बानगी प्रस्तुत है।
12 अक्तूबर, 2009
कभी देखी है आपने ईशारों की भाषा
कर्णप्रिय संगीत, मीठे और प्यारे संवादों से दूर इंसानों की एक ऐसी दुनिया होती है जहां पर आवाज या संगीत नाम की कोई चीज नहीं होती। ऐसी ही एक दुनिया होती है मूक-बधिरों की दुनिया । जहां ईशारे ही भाषा का कार्य करते हैं और ईशारों से ही विचारों, भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है। गत दिनों एक ऐसा ही नज़ारा दिखाई दिया। आप भी देखे कैसी होती है ईशारों की भाषा।
26 सितंबर, 2009
Ya Devi.......
23 सितंबर, 2009
बीटी कॉटन की कहानी
दक्षिण राजस्थान और गुजरात के सरहदी इलाकों में बीटी कॉटन की खेती में बाल श्रम के उपयोग को लेकर इन दिनों बीटी कॉटन चर्चा में है। बीटी कॉटन को पैदा करने की कहानी भी बडी अजीब है। इसे देखकर आश्चर्य हो उठता है कि इस जनजाति अंचल में रहने वाले आदिवासी कृञिम परागण की प्रक्रिया से परिचित है और उन्नत पैदावार के लिए इतनी सारी मशक्कत करते हैं।
आइये देखते है आखिर कैसे पैदा होता है बीटी कॉटन --- एक फोटो फीचर मैने कल जारी किया था उसी को सुधी पाठकों की जानकारी के लिए इस ब्लॉग के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।
कृत्रिम परागण की विधि से तैयार किए जाने वाली इस फसल में चरणबद्ध व श्रमसाध्य प्रक्रिया को चित्रों के माध्यम से समझा जा सकता है। चित्र-1 में कपास के पौधों का मादा पुष्प है। चित्र दो में इस मादा पुष्प को चीरकर इसका स्त्री केसर निकाल दिया जाता है। देखें नीचे के चिञ में ।
अब बारी आती है नर पुष्प की, चित्र तीन के अनुसार इसे लेकर छिल दिया जाता है व पुंकेसर को बाहर निकाला जाता है। चित्र चार में पुंकेसर और स्त्रीकेसर का परागण करवाया जाता है।
चित्र पांच में परागण उपरान्त मादा पुष्प के उपर विशेष टेग लगा दिया जाता है। कुछ दिनों उपरान्त चित्र छः के अनुसार मादा पुष्प विकसित होकर फलित होता है।
चूंकि यह सारी प्रक्रिया कपास के छोटे-छोटे पौधों के साथ संपादित होती है ऐसे में काश्तकार बीटी कॉटन की इस खेती के लिए बाल श्रमिकों को उपयोगी मानते हैं।
आइये देखते है आखिर कैसे पैदा होता है बीटी कॉटन --- एक फोटो फीचर मैने कल जारी किया था उसी को सुधी पाठकों की जानकारी के लिए इस ब्लॉग के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।
कृत्रिम परागण की विधि से तैयार किए जाने वाली इस फसल में चरणबद्ध व श्रमसाध्य प्रक्रिया को चित्रों के माध्यम से समझा जा सकता है। चित्र-1 में कपास के पौधों का मादा पुष्प है। चित्र दो में इस मादा पुष्प को चीरकर इसका स्त्री केसर निकाल दिया जाता है। देखें नीचे के चिञ में ।
अब बारी आती है नर पुष्प की, चित्र तीन के अनुसार इसे लेकर छिल दिया जाता है व पुंकेसर को बाहर निकाला जाता है। चित्र चार में पुंकेसर और स्त्रीकेसर का परागण करवाया जाता है।
चित्र पांच में परागण उपरान्त मादा पुष्प के उपर विशेष टेग लगा दिया जाता है। कुछ दिनों उपरान्त चित्र छः के अनुसार मादा पुष्प विकसित होकर फलित होता है।
चूंकि यह सारी प्रक्रिया कपास के छोटे-छोटे पौधों के साथ संपादित होती है ऐसे में काश्तकार बीटी कॉटन की इस खेती के लिए बाल श्रमिकों को उपयोगी मानते हैं।
21 सितंबर, 2009
आपने कभी देखा है ..... लोगों का पहाड़
आपने छोटे-बड़े कई प्रकार के पहाड़ देखे होंगे परंतु आज तक कभी आपने लोगों का पहाड़ नहीं देखा होगा। जी हां हमने देखा है ..लोगों का ऐसा ही पहाड़ और अक्सर देखा करते है। हमारे यहां छोटे-छोटे कई पहाड़ (डूंगर) है और जब कभी कोई वीआईपी आता है तो हमारे यहां के लोग उन्हें देखने उमड़ते हैं (खासकर जब कोई वीआईपी हेलीकॉप्टर जिसे स्थानीय बोली में पांजरू कहा जाता है, में बैठकर आता है) इस दौरान लोग हेलीपेड के आसपास की पहाड़ियों पर चढ़ जाते है और बन जाता है लोगों का अस्थाई पहाड़ । चले देखते हैं एक नज़र लोगों का एक पहाड़ ।
14 सितंबर, 2009
तस्वीरें जो दिल को छू गई
राजसिंह डूंगरपुर की अंतिम याञा दौरान कई सारी तस्वीरें ली गई परंतु कुछ तस्वीरें ऐसी थी जो दिल को छू गई। ऐसी ही कुछ तस्वीरों को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
अब इस दम्पत्ति को देखें जिन्होंने दूरस्थ ग्राम्यांचल से पहुंचकर राजसिंहजी के अंतिम दर्शन किए ---
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कुछ ऐसे शख्स जिनका क्रिकेट से कोई लेना देना नहीं परंतु वे तो राजसिंहजी के मुरीद थे। गांवों से आए ऐसे ही कुछ आदिवासी भाई भी अपने प्रिय राजसिंहजी को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे थे। ऐसे ही कुछ नज़ारें ----
अपने प्रिय राजसिंहजी को दोनों हाथ जोड़कर श्रद्धासुमन अर्पित करता एक ग्रामीण ----
अब इस दम्पत्ति को देखें जिन्होंने दूरस्थ ग्राम्यांचल से पहुंचकर राजसिंहजी के अंतिम दर्शन किए ---
13 सितंबर, 2009
राजसिंह डूंगरपुर पंचतत्वों में विलीन हुए
राजसिंह डूंगरपुर का पार्थिव शरीर आज डूंगरपुर शहर के समीप सुरपुर गांव स्थित भूलमणि श्मशान घाट पर पंचतत्वों में विलीन हुआ। इस मौके पर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजरूद्दीन सहित कई नामी गिरामी हस्तियां, राजनेता, जनप्रतिनिधि, क्रिकेटर, समाजजन, उनके मिञ और वागड़-मेवाड़ से हजारों की संख्या में उनके प्रशंसक सम्मिलित हुए।
प्रस्तुत है उनकी अंतिम याञा की चिञमय स्मृतियां
12 सितंबर, 2009
राजसिंह डूंगरपुर का जीवन परिचय
विश्वप्रसिद्ध क्रिकेट समीक्षक, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष राजसिंह डूँगरपुर का जन्म डूँगरपुर के पूर्व महारावल लक्ष्मणसिंह के तीसरे पुत्र के रूप में 19 दिसम्बर 1935 को हुआ था। एक क्रिकेट खिलाडी, कमेन्टेटर, समीक्षक एवं प्रशासक के रूप में क्रिकेट जगत को कई दशकों तक अपनी सेवाएं देने वाले राजसिंह डूँगरपुर ने अपनी शिक्षा मेयो कॉलेज अजमेर व डेली कॉलेज इन्दौर से प्राप्त की।
एन.पी.केसरी से प्रशिक्षित राजसिंह डूँगरपुर से रणजी ट्राफी में वर्ष 1955-56 में इन्दौर में मध्य भारत की ओर से मध्यप्रदेश के खिलाफ खेलते हुए प्रथम श्रेणी क्रिकट की शुरूआत की और अगले 16 वर्षों तक मध्यम गति के तेज गेंदबाज के रूप में प्रदेश व देश के विभिन्न खेल मैदानों पर अपनी गेंदबाजी के जौहर दिखाए। उन्होने दिलीप ट्राफी के 11 मैचों एवं 1960-61 में एमसीसी इग्लेण्ड के विरूद्ध भी श्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
क्रिकेट जगत में ‘राजभाई’ के नाम से पहचाने जाने वाले राजसिंह डूंगरपुर ने 60 रणजी ट्राफी मैचों में खेलकर 182 विकेट लिए व 991 रन बनाए। उनकी श्रेष्ठ गेंदबाजी 55 रन पर 5 विकेट एवं 88 रन पर 7 विकेट 1967-68 में विदर्भ के खिलाफ रही। उन्होंने 1962-63 से 65-66 तक 19 मैचों में राजस्थान टीम का नेतृत्व किया जिसमें राजस्थान तीन बार रणजी ट्राफी का उपविजेता रहा। वर्ष 1973 में क्रिकेट क्लब ऑफ इण्डिया की एक्जीक्यूटीव कमेटी के सदस्य बने राजसिंह वर्ष 1992 से अनवरत क्लब के सदस्य थे। राजसिंह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की राष्ट्रीय चयन समिति में 1973 से 77 तक चयनकर्त्ता एवं वर्ष 1989-90 में अध्यक्ष रहे। उन्होंन भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर के रूप में उल्लेखनीय सेवाएं प्रदान की। वर्ष 1979 में आस्ट्रेलिया व पाकिस्तान तथा 1982 व 1985 में इग्लेण्ड के खिलाफ खेले गए मैचों के साथ ही विदेशों में 1982 व 86 में इग्लेण्ड, 1986 में शारजाह तथा 1984 व 2005-06 में भारतीय टीम के पाकिस्तान दौरे पर वे मैनेजर रहे।
क्रिकेट प्रबन्धन के क्षेत्र में दीर्घकालीन सेवाओं व अनुभव के बूते वे 25 सितम्बर 1996 को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। वे एम.सी.सी. के सदस्य तथा सर्रे क्रिकेट क्लब इण्लेण्ड के एक मात्र भारतीय आजीवन सदस्य रहे।
राजस्थान राज्य क्रीडा परिषद् के अध्यक्ष रहे राजसिंह डूँगरपुर को ‘राजस्थान श्री’, डेलियन अवार्ड 1982 एवं जेम्सटॉड अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया था।
आज दिनांक 12 सितम्बर 2009 को उनके आकस्मिक निधन पर समूचा डूंगरपुर उन्हें आत्मीय श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
डूंगरपुर प्रवास दौरान राजसिंह डूंगरपुर अपने मिञों से कुछ यों मिलते थे -
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एन.पी.केसरी से प्रशिक्षित राजसिंह डूँगरपुर से रणजी ट्राफी में वर्ष 1955-56 में इन्दौर में मध्य भारत की ओर से मध्यप्रदेश के खिलाफ खेलते हुए प्रथम श्रेणी क्रिकट की शुरूआत की और अगले 16 वर्षों तक मध्यम गति के तेज गेंदबाज के रूप में प्रदेश व देश के विभिन्न खेल मैदानों पर अपनी गेंदबाजी के जौहर दिखाए। उन्होने दिलीप ट्राफी के 11 मैचों एवं 1960-61 में एमसीसी इग्लेण्ड के विरूद्ध भी श्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
क्रिकेट जगत में ‘राजभाई’ के नाम से पहचाने जाने वाले राजसिंह डूंगरपुर ने 60 रणजी ट्राफी मैचों में खेलकर 182 विकेट लिए व 991 रन बनाए। उनकी श्रेष्ठ गेंदबाजी 55 रन पर 5 विकेट एवं 88 रन पर 7 विकेट 1967-68 में विदर्भ के खिलाफ रही। उन्होंने 1962-63 से 65-66 तक 19 मैचों में राजस्थान टीम का नेतृत्व किया जिसमें राजस्थान तीन बार रणजी ट्राफी का उपविजेता रहा। वर्ष 1973 में क्रिकेट क्लब ऑफ इण्डिया की एक्जीक्यूटीव कमेटी के सदस्य बने राजसिंह वर्ष 1992 से अनवरत क्लब के सदस्य थे। राजसिंह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की राष्ट्रीय चयन समिति में 1973 से 77 तक चयनकर्त्ता एवं वर्ष 1989-90 में अध्यक्ष रहे। उन्होंन भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर के रूप में उल्लेखनीय सेवाएं प्रदान की। वर्ष 1979 में आस्ट्रेलिया व पाकिस्तान तथा 1982 व 1985 में इग्लेण्ड के खिलाफ खेले गए मैचों के साथ ही विदेशों में 1982 व 86 में इग्लेण्ड, 1986 में शारजाह तथा 1984 व 2005-06 में भारतीय टीम के पाकिस्तान दौरे पर वे मैनेजर रहे।
क्रिकेट प्रबन्धन के क्षेत्र में दीर्घकालीन सेवाओं व अनुभव के बूते वे 25 सितम्बर 1996 को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। वे एम.सी.सी. के सदस्य तथा सर्रे क्रिकेट क्लब इण्लेण्ड के एक मात्र भारतीय आजीवन सदस्य रहे।
राजस्थान राज्य क्रीडा परिषद् के अध्यक्ष रहे राजसिंह डूँगरपुर को ‘राजस्थान श्री’, डेलियन अवार्ड 1982 एवं जेम्सटॉड अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया था।
आज दिनांक 12 सितम्बर 2009 को उनके आकस्मिक निधन पर समूचा डूंगरपुर उन्हें आत्मीय श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
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राजसिंह डूंगरपुर की चिञमय स्मृतियां
डूंगरपुर में फरवरी 2001 में भूकम्प पीडि़तों की सहायतार्थ आयोजित ईग्लेण्ड के आईजिंगारी क्रिकेट क्लब और स्थानीय क्लब के बीच आयोजित मैच में मेजबानी करते हुए राजसिंह डूंगरपुर कुछ यों दिखें।
डूंगरपुर प्रवास दौरान राजसिंह डूंगरपुर अपने मिञों से कुछ यों मिलते थे -
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स्मृति शेष राजसिंह डूंगरपुर
04 सितंबर, 2009
पानी या चांदी
मानसून मेहरबान हुआ तो नदी-नाले सब लबालब हुए। लबालब होकर छलके तो एक ऐसा नज़ारा साक्षात हुआ जिसमें पानी के स्थान पर चांदी बहती दिखाई दी। प्रस्तुत है एक ऐसा ही नज़ारा।
कुदरत की तस्वीर
कुदरत अपने आप में वाकई बेहद खुबसूरत है। पेड़-पौधे, नदी-नाले, धरती-आकाश और हर चीज इसकी बेनज़ीर है। गत दिनों एक नज़ारा ऐसा भी दिखा जिसमें कुदरत की फ्रेम जड़ी तस्वीर साक्षात हो उठी।
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02 सितंबर, 2009
पानी पर चिञकारी
प्रकृति की माया भी अजीब है। इसके हर स्वरूप में अपना अलग ही रंग छिपा हुआ है। जरूरत है तो बस उसे महसूस करने की, उसे ढूंढ निकालने और उसका वास्तविक आनंद प्राप्त करने की। वागड़ अंचल का डूंगरपुर जिला प्रकृति के ऐसे ही अनुपम नज़ारों से लकदक जरूर है परंतु अभी तक उसको ढूंढा नहीं गया है, गुणीजनों तक नहीं पहुंचाया गया है।
गत दिनों डूंगरपुर के समीप एक रमणीय स्थल नीला पानी गया। रास्ते में बहुत से नज़ारे दिखाई दिए। इस स्थान पर बह रही नदी पर हाल ही पुल बनाया गया है। इस पुल पर जब मेरे दो साथी गुजरे तो पानी में उनकी अलग ही छवि दिखाई दी। मानो हरे पानी के कैनवास पर पोस्टर कलर से प्रकृति ने दो छवियां उकेरी हो। वास्तविकता का आभास कराने के लिए दो अलग-अलग फोटोग्राफ यहां पर प्रस्तुत किए जा रहे हैं। पहले देखिये उलटा फोटोग्राफ और सीधी चिञकारी -----
अब देखिये सीधा फोटोग्राफ और उलटी चिञकारी --- गत दिनों डूंगरपुर के समीप एक रमणीय स्थल नीला पानी गया। रास्ते में बहुत से नज़ारे दिखाई दिए। इस स्थान पर बह रही नदी पर हाल ही पुल बनाया गया है। इस पुल पर जब मेरे दो साथी गुजरे तो पानी में उनकी अलग ही छवि दिखाई दी। मानो हरे पानी के कैनवास पर पोस्टर कलर से प्रकृति ने दो छवियां उकेरी हो। वास्तविकता का आभास कराने के लिए दो अलग-अलग फोटोग्राफ यहां पर प्रस्तुत किए जा रहे हैं। पहले देखिये उलटा फोटोग्राफ और सीधी चिञकारी -----
21 अगस्त, 2009
मंदिर जहां फूल नहीं पत्थर चढाए जाते हैं
अजब अनूठी सांस्कृतिक परंपराओ का धनी वागड अंचल अपने चमत्कारिक और विशिष्ट जनश्रुतियों वाले देवालयों के लिए भी जाना जाता है। अपने गौरवमयी इतिहास के धनी अन्य देवालयों के साथ ही वागड अंचल के डूंगरपुर जिले में एक ऐसा भी मंदिर है जहां पर देवता को प्रसन्न करने के लिए फूल नहीं अपितु पत्थर चढाए जाते हैं। जिला मुख्यालय से माञ पांच किलोमीटर की दूरी पर सुन्दरपुर गांव के समीप स्थित है यह अनोखा मंदिर। सडक किनारे सटा हुआ यह छोटा सा मंदिर देखने में जरूर छोटा है पर इससे जुडी अनोखी बात के लिए यह बेहद चर्चित है। संभवत देशभर में यह एकमाञ मंदिर होगा जहां देवता को पत्थर चढा कर प्रसन्न करने के जतन किए जाते हैं। इन अनोखी बात के लिए इलेक्ट्रोनिक और प्रिन्ट मीडिया में भी यह मंदिर चर्चा में आया है।
पत्थर चढाने की परिपाटी के बारे मे पूछने पर गांव वाले कुछ प्रमाणिक तथ्य तो नहीं दे पाए अलबत्ता बताया कि एक दूसरे को पत्थर चढाते देखते देखते अन्य लोगों ने भी उत्सुकतावश पत्थर चढाना प्रारंभ किया और धीरे धीरे एक परिपाटी सी बन गई है। काफी कुरेदने पर तथ्य पता चला कि किसी वक्त इसी स्थान पर दुर्घटना में किसी ट्रेक्टर चालक की मौत हो गई थी। चालक ट्रेक्टर में पत्थर भरकर ले जा रहा था। उसके परिजनों ने उसकी याद में छोटा सा मंदिर बनाया तो अन्य ट्रेक्टर चालकों ने दिवंगत आत्मा के क्रोध से बचने के लिए यहां से गुजरते वक्त अपने ट्रेक्टर में भरे पत्थरों में से एक पत्थर दिवंगत की याद में चढाना प्रारंभ किया और धीरे धीरे यह परिपाटी चल पडी। आज स्थिति यह है कि छोटे से मंदिर के पीछे श्रद़धालुओं द्वारा चढाए गए पत्थरों के दो ढेर पहाड जैसे दिखाई पडते हैं। वास्तविकता जो कुछ भी हो परंतु जनश्रद़धा में चढाया हुआ एक एक पत्थर यहां से गुजरने वाले हजारो लाखों लोगों की श्रद़धाओं के पहाड रूप में इस स्थान विशिष्टता को उजागर जरूर करते हैं।
थोडा नजर नीचे भी डाले तो मंदिर और उसके पीछे श्रद़धालुओं द्वारा चढाए गए पत्थरों के ढेर दिखाई दे रहे हैं।
पत्थर चढाने की परिपाटी के बारे मे पूछने पर गांव वाले कुछ प्रमाणिक तथ्य तो नहीं दे पाए अलबत्ता बताया कि एक दूसरे को पत्थर चढाते देखते देखते अन्य लोगों ने भी उत्सुकतावश पत्थर चढाना प्रारंभ किया और धीरे धीरे एक परिपाटी सी बन गई है। काफी कुरेदने पर तथ्य पता चला कि किसी वक्त इसी स्थान पर दुर्घटना में किसी ट्रेक्टर चालक की मौत हो गई थी। चालक ट्रेक्टर में पत्थर भरकर ले जा रहा था। उसके परिजनों ने उसकी याद में छोटा सा मंदिर बनाया तो अन्य ट्रेक्टर चालकों ने दिवंगत आत्मा के क्रोध से बचने के लिए यहां से गुजरते वक्त अपने ट्रेक्टर में भरे पत्थरों में से एक पत्थर दिवंगत की याद में चढाना प्रारंभ किया और धीरे धीरे यह परिपाटी चल पडी। आज स्थिति यह है कि छोटे से मंदिर के पीछे श्रद़धालुओं द्वारा चढाए गए पत्थरों के दो ढेर पहाड जैसे दिखाई पडते हैं। वास्तविकता जो कुछ भी हो परंतु जनश्रद़धा में चढाया हुआ एक एक पत्थर यहां से गुजरने वाले हजारो लाखों लोगों की श्रद़धाओं के पहाड रूप में इस स्थान विशिष्टता को उजागर जरूर करते हैं।
थोडा नजर नीचे भी डाले तो मंदिर और उसके पीछे श्रद़धालुओं द्वारा चढाए गए पत्थरों के ढेर दिखाई दे रहे हैं।
19 अगस्त, 2009
बरखा बहार आई
मेह बाबा कुछ मेहरबान हुआ और बरखा बहार आई। वागड में यो तों पर्याप्त बारिश नहीं हुई पर डूंगपुर जिले के कुछ बांध लबालब हो गए। कई छोटे छोटे एनीकट बह निकले। जिले के डिमीया व मारगिया बांध लबालब होकर छलक गए और इन पर मनोहारी नजारा बन पडा। आपके लिए खेतों, एनीकट और मारगिया बांध के इस नजारे को सहेज कर परोसा जा रहा है। आप भी शामिल हो जाईये और गाइये ़़़ बरखा बहार आई़़़़़़
डूंगरपुर जिले के मारगिया बांध का सौन्दर्य अद़भुत है, अतुलनीय है। कई पहाडों के घेरे में समाई हुई अथाह जलराशि वैसे ही एक नजर में हर किसी को आकर्षित कर लेती है और जब यह लबालब होकर छलकता है तो इसका सौन्दर्य द्विगुणित हो जाता है। सिर्फ फोटोग्राफ देखने से मन संतुष्ट नहीं होगा। मैने निसर्ग सौन्दर्यप्रेमियों के लिए एक विडियो क्लिप्स भी बनाया है आपके मध्य रखना चाहूंगा---- शायद पसंद आएगा।
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