दक्षिण राजस्थान और गुजरात के सरहदी इलाकों में बीटी कॉटन की खेती में बाल श्रम के उपयोग को लेकर इन दिनों बीटी कॉटन चर्चा में है। बीटी कॉटन को पैदा करने की कहानी भी बडी अजीब है। इसे देखकर आश्चर्य हो उठता है कि इस जनजाति अंचल में रहने वाले आदिवासी कृञिम परागण की प्रक्रिया से परिचित है और उन्नत पैदावार के लिए इतनी सारी मशक्कत करते हैं। आइये देखते है आखिर कैसे पैदा होता है बीटी कॉटन --- एक फोटो फीचर मैने कल जारी किया था उसी को सुधी पाठकों की जानकारी के लिए इस ब्लॉग के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।कृत्रिम परागण की विधि से तैयार किए जाने वाली इस फसल में चरणबद्ध व श्रमसाध्य प्रक्रिया को चित्रों के माध्यम से समझा जा सकता है। चित्र-1 में कपास के पौधों का मादा पुष्प है। चित्र दो में इस मादा पुष्प को चीरकर इसका स्त्री केसर निकाल दिया जाता है। देखें नीचे के चिञ में ।

अब बारी आती है नर पुष्प की, चित्र तीन के अनुसार इसे लेकर छिल दिया जाता है व पुंकेसर को बाहर निकाला जाता है। चित्र चार में पुंकेसर और स्त्रीकेसर का परागण करवाया जाता है।

चित्र पांच में परागण उपरान्त मादा पुष्प के उपर विशेष टेग लगा दिया जाता है। कुछ दिनों उपरान्त चित्र छः के अनुसार मादा पुष्प विकसित होकर फलित होता है।

चूंकि यह सारी प्रक्रिया कपास के छोटे-छोटे पौधों के साथ संपादित होती है ऐसे में काश्तकार बीटी कॉटन की इस खेती के लिए बाल श्रमिकों को उपयोगी मानते हैं।
....very interesting..!!!
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