पत्थर चढाने की परिपाटी के बारे मे पूछने पर गांव वाले कुछ प्रमाणिक तथ्य तो नहीं दे पाए अलबत्ता बताया कि एक दूसरे को पत्थर चढाते देखते देखते अन्य लोगों ने भी उत्सुकतावश पत्थर चढाना प्रारंभ किया और धीरे धीरे एक परिपाटी सी बन गई है। काफी कुरेदने पर तथ्य पता चला कि किसी वक्त इसी स्थान पर दुर्घटना में किसी ट्रेक्टर चालक की मौत हो गई थी। चालक ट्रेक्टर में पत्थर भरकर ले जा रहा था। उसके परिजनों ने उसकी याद में छोटा सा मंदिर बनाया तो अन्य ट्रेक्टर चालकों ने दिवंगत आत्मा के क्रोध से बचने के लिए यहां से गुजरते वक्त अपने ट्रेक्टर में भरे पत्थरों में से एक पत्थर दिवंगत की याद में चढाना प्रारंभ किया और धीरे धीरे यह परिपाटी चल पडी। आज स्थिति यह है कि छोटे से मंदिर के पीछे श्रद़धालुओं द्वारा चढाए गए पत्थरों के दो ढेर पहाड जैसे दिखाई पडते हैं। वास्तविकता जो कुछ भी हो परंतु जनश्रद़धा में चढाया हुआ एक एक पत्थर यहां से गुजरने वाले हजारो लाखों लोगों की श्रद़धाओं के पहाड रूप में इस स्थान विशिष्टता को उजागर जरूर करते हैं।
थोडा नजर नीचे भी डाले तो मंदिर और उसके पीछे श्रद़धालुओं द्वारा चढाए गए पत्थरों के ढेर दिखाई दे रहे हैं।
