26 सितंबर, 2009

Ya Devi.......

Temple Devi Andhari Mata (Dungarpur)

Devi Andhari Mata (Dungarpur)

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Devi Tripura Sundri (Banswara)


Devi Tripura Sundri (Banswara)

23 सितंबर, 2009

बीटी कॉटन की कहानी

दक्षिण राजस्थान और गुजरात के सरहदी इलाकों में बीटी कॉटन की खेती में बाल श्रम के उपयोग को लेकर इन दिनों बीटी कॉटन चर्चा में है। बीटी कॉटन को पैदा करने की कहानी भी बडी अजीब है। इसे देखकर आश्‍चर्य हो उठता है कि इस जनजाति अंचल में रहने वाले आदिवासी कृञिम परागण की प्रक्रिया से परिचित है और उन्‍नत पैदावार के लिए इतनी सारी मशक्‍कत करते हैं।
आइये देखते है आखिर कैसे पैदा होता है बीटी कॉटन --- एक फोटो फीचर मैने कल जारी किया था उसी को सुधी पाठकों की जानकारी के लिए इस ब्‍लॉग के माध्‍यम से प्रस्‍तुत कर रहा हूँ।

कृत्रिम परागण की विधि से तैयार किए जाने वाली इस फसल में चरणबद्ध व श्रमसाध्य प्रक्रिया को चित्रों के माध्यम से समझा जा सकता है। चित्र-1 में कपास के पौधों का मादा पुष्प है। चित्र दो में इस मादा पुष्प को चीरकर इसका स्त्री केसर निकाल दिया जाता है। देखें नीचे के चिञ में ।

अब बारी आती है नर पुष्प की, चित्र तीन के अनुसार इसे लेकर छिल दिया जाता है व पुंकेसर को बाहर निकाला जाता है। चित्र चार में पुंकेसर और स्त्रीकेसर का परागण करवाया जाता है।


चित्र पांच में परागण उपरान्त मादा पुष्प के उपर विशेष टेग लगा दिया जाता है। कुछ दिनों उपरान्त चित्र छः के अनुसार मादा पुष्प विकसित होकर फलित होता है।

चूंकि यह सारी प्रक्रिया कपास के छोटे-छोटे पौधों के साथ संपादित होती है ऐसे में काश्तकार बीटी कॉटन की इस खेती के लिए बाल श्रमिकों को उपयोगी मानते हैं।

21 सितंबर, 2009

आपने कभी देखा है ..... लोगों का पहाड़

आपने छोटे-बड़े कई प्रकार के पहाड़ देखे होंगे परंतु आज तक कभी आपने लोगों का पहाड़ नहीं देखा होगा। जी हां हमने देखा है ..लोगों का ऐसा ही पहाड़ और अक्‍सर देखा करते है। हमारे यहां छोटे-छोटे कई पहाड़ (डूंगर) है और जब कभी कोई वीआईपी आता है तो हमारे यहां के लोग उन्‍हें देखने उमड़ते हैं (खासकर जब कोई वीआईपी हेलीकॉप्‍टर जिसे स्‍थानीय बोली में पांजरू कहा जाता है, में बैठकर आता है) इस दौरान लोग हेलीपेड के आसपास की पहाड़ियों पर चढ़ जाते है और बन जाता है लोगों का अस्‍थाई पहाड़ । चले देखते हैं एक नज़र लोगों का एक पहाड़ ।

14 सितंबर, 2009

तस्‍वीरें जो दिल को छू गई

राजसिंह डूंगरपुर की अंतिम याञा दौरान कई सारी तस्‍वीरें ली गई परंतु कुछ तस्‍वीरें ऐसी थी जो दिल को छू गई। ऐसी ही कुछ तस्‍वीरों को यहां प्रस्‍तुत किया जा रहा है।



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कुछ ऐसे शख्‍स जिनका क्रिकेट से कोई लेना देना नहीं परंतु वे तो राजसिंहजी के मुरीद थे। गांवों से आए ऐसे ही कुछ आदिवासी भाई भी अपने प्रिय राजसिंहजी को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे थे। ऐसे ही कुछ नज़ारें ----

अपने प्रिय राजसिंहजी को दोनों हाथ जोड़कर श्रद्धासुमन अर्पित करता एक ग्रामीण ----


अब इस दम्‍पत्ति को देखें जिन्‍होंने दूरस्‍थ ग्राम्‍यांचल से पहुंचकर राजसिंहजी के अंतिम दर्शन किए ---








13 सितंबर, 2009

राजसिंह डूंगरपुर पंचतत्‍वों में विलीन हुए








राजसिंह डूंगरपुर का पार्थिव शरीर आज डूंगरपुर शहर के समीप सुरपुर गांव स्थित भूलमणि श्‍मशान घाट पर पंचतत्‍वों में विलीन हुआ। इस मौके पर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्‍तान मोहम्‍मद अजरूद्दीन सहित कई नामी गिरामी हस्तियां, राजनेता, जनप्रतिनिधि, क्रिकेटर, समाजजन, उनके मिञ और वागड़-मेवाड़ से हजारों की संख्‍या में उनके प्रशंसक सम्मिलित हुए।




प्रस्‍तुत है उनकी अंतिम याञा की चिञमय स्‍मृतियां
























12 सितंबर, 2009

राजसिंह डूंगरपुर का जीवन परिचय

विश्वप्रसिद्ध क्रिकेट समीक्षक, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष राजसिंह डूँगरपुर का जन्म डूँगरपुर के पूर्व महारावल लक्ष्मणसिंह के तीसरे पुत्र के रूप में 19 दिसम्बर 1935 को हुआ था। एक क्रिकेट खिलाडी, कमेन्टेटर, समीक्षक एवं प्रशासक के रूप में क्रिकेट जगत को कई दशकों तक अपनी सेवाएं देने वाले राजसिंह डूँगरपुर ने अपनी शिक्षा मेयो कॉलेज अजमेर व डेली कॉलेज इन्दौर से प्राप्त की।
एन.पी.केसरी से प्रशिक्षित राजसिंह डूँगरपुर से रणजी ट्राफी में वर्ष 1955-56 में इन्दौर में मध्य भारत की ओर से मध्यप्रदेश के खिलाफ खेलते हुए प्रथम श्रेणी क्रिकट की शुरूआत की और अगले 16 वर्षों तक मध्यम गति के तेज गेंदबाज के रूप में प्रदेश व देश के विभिन्न खेल मैदानों पर अपनी गेंदबाजी के जौहर दिखाए। उन्होने दिलीप ट्राफी के 11 मैचों एवं 1960-61 में एमसीसी इग्लेण्ड के विरूद्ध भी श्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
क्रिकेट जगत में ‘राजभाई’ के नाम से पहचाने जाने वाले राजसिंह डूंगरपुर ने 60 रणजी ट्राफी मैचों में खेलकर 182 विकेट लिए व 991 रन बनाए। उनकी श्रेष्ठ गेंदबाजी 55 रन पर 5 विकेट एवं 88 रन पर 7 विकेट 1967-68 में विदर्भ के खिलाफ रही। उन्होंने 1962-63 से 65-66 तक 19 मैचों में राजस्थान टीम का नेतृत्व किया जिसमें राजस्थान तीन बार रणजी ट्राफी का उपविजेता रहा। वर्ष 1973 में क्रिकेट क्लब ऑफ इण्डिया की एक्जीक्यूटीव कमेटी के सदस्य बने राजसिंह वर्ष 1992 से अनवरत क्लब के सदस्य थे। राजसिंह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की राष्ट्रीय चयन समिति में 1973 से 77 तक चयनकर्त्ता एवं वर्ष 1989-90 में अध्यक्ष रहे। उन्होंन भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर के रूप में उल्लेखनीय सेवाएं प्रदान की। वर्ष 1979 में आस्ट्रेलिया व पाकिस्तान तथा 1982 व 1985 में इग्लेण्ड के खिलाफ खेले गए मैचों के साथ ही विदेशों में 1982 व 86 में इग्लेण्ड, 1986 में शारजाह तथा 1984 व 2005-06 में भारतीय टीम के पाकिस्तान दौरे पर वे मैनेजर रहे।
क्रिकेट प्रबन्धन के क्षेत्र में दीर्घकालीन सेवाओं व अनुभव के बूते वे 25 सितम्बर 1996 को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। वे एम.सी.सी. के सदस्य तथा सर्रे क्रिकेट क्लब इण्लेण्ड के एक मात्र भारतीय आजीवन सदस्य रहे।
राजस्थान राज्य क्रीडा परिषद् के अध्यक्ष रहे राजसिंह डूँगरपुर को ‘राजस्थान श्री’, डेलियन अवार्ड 1982 एवं जेम्सटॉड अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया था।
आज दिनांक 12 सितम्बर 2009 को उनके आकस्मिक निधन पर समूचा डूंगरपुर उन्हें आत्मीय श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
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राजसिंह डूंगरपुर की चिञमय स्‍मृतियां
डूंगरपुर में फरवरी 2001 में भूकम्‍प पीडि़तों की सहायतार्थ आयोजित ईग्‍लेण्‍ड के आईजिंगारी क्रिकेट क्‍लब और स्‍थानीय क्‍लब के बीच आयोजित मैच में मेजबानी करते हुए राजसिंह डूंगरपुर कुछ यों दिखें।

डूंगरपुर प्रवास दौरान राजसिंह डूंगरपुर अपने मिञों से कुछ यों मिलते थे -

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स्‍मृति शेष राजसिंह डूंगरपुर


राजसिंह डूंगरपुर नहीं रहे ------
हर कोई स्‍तब्‍ध है, राजसिंह डूंगरपुर के निधन का समाचार सुनकर। वे अब केवल तस्‍वीरों में ही हैं । स्‍मृति शेष डूंगरपुर से जुड़ी चिञमय स्‍मृतियां यहां प्रस्‍तुत की जा रही हैं।



04 सितंबर, 2009

पानी या चांदी

मानसून मेहरबान हुआ तो नदी-नाले सब लबालब हुए। लबालब होकर छलके तो एक ऐसा नज़ारा साक्षात हुआ जिसमें पानी के स्‍थान पर चांदी बहती दिखाई दी। प्रस्‍तुत है एक ऐसा ही नज़ारा।






कुदरत की तस्‍वीर

कुदरत अपने आप में वाकई बेहद खुबसूरत है। पेड़-पौधे, नदी-नाले, धरती-आकाश और हर चीज इसकी बेनज़ीर है। गत दिनों एक नज़ारा ऐसा भी दिखा जिसमें कुदरत की फ्रेम जड़ी तस्‍वीर साक्षात हो उठी।
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02 सितंबर, 2009

पानी पर चिञकारी

प्रकृति की माया भी अजीब है। इसके हर स्‍वरूप में अपना अलग ही रंग छिपा हुआ है। जरूरत है तो बस उसे महसूस करने की, उसे ढूंढ निकालने और उसका वास्‍तविक आनंद प्राप्‍त करने की। वागड़ अंचल का डूंगरपुर जिला प्रकृति के ऐसे ही अनुपम नज़ारों से लकदक जरूर है परंतु अभी तक उसको ढूंढा नहीं गया है, गुणीजनों तक नहीं पहुंचाया गया है।
गत दिनों डूंगरपुर के समीप एक रमणीय स्‍थल नीला पानी गया। रास्‍ते में बहुत से नज़ारे दिखाई दिए। इस स्‍थान पर बह रही नदी पर हाल ही पुल बनाया गया है। इस पुल पर जब मेरे दो साथी गुजरे तो पानी में उनकी अलग ही छवि दिखाई दी। मानो हरे पानी के कैनवास पर पोस्‍टर कलर से प्रकृति ने दो छवियां उकेरी हो। वास्‍तविकता का आभास कराने के लिए दो अलग-अलग फोटोग्राफ यहां पर प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं। पहले देखिये उलटा फोटोग्राफ और सीधी चिञकारी -----
अब देखिये सीधा फोटोग्राफ और उलटी चिञकारी ---