एक समय था जब आषाढ के लगते लगते तो बारिश का वो मनोरम नजारा देखने को मिल जाता था कि मन प्रफुल्लित हो उठता था। पिछले कुछ वर्षों से ऐसा नजारा नहीं दिखाई दिया। इस वर्ष भी मानसून आराम कर रहा है तो आम लोगों का जीना मुहाल हो गया है। इन दिनों आषाढ लग गया परंतु बरसात नहीं आई। अब लोगों की चिंताएं भी बढ गई हैं।
कुछ ऐसे ही नजारे इन दिनों डूंगरपुर क्षेञ के हैं
07 जुलाई, 2009
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भाई कमलेश जी, मजा आ गया ब्लॉग जगत में अपने डूंगरपुर को देखकर. आपकी लेखनी का नाम सुना था , आज रू -ब-रू भी हो गए. कृपया इसे जारी रखिए.
जवाब देंहटाएंसादर शुभकामनाएं.
swagat hai aapka !
जवाब देंहटाएंmanoram,manbhavan.narayan narayan
जवाब देंहटाएंहिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका,
जवाब देंहटाएंकब आवोगो रे बदरवा
कब जल बरसावोगे रे बदरवा
प्यासा जीवन प्यासा ये मन
क्या आंसुओं से भिगावों गे रे तन
ऐ बदरवा
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंSIR मजा आ गया
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